संडे वाली चिट्ठी 1- dear J

डियर J,

मुझे ये बिलकुल सही से पता है कि मैं अपने हर रिश्ते से चाहता क्या हूँ। मुझे क्या हम सभी को शायद ये बात हमेशा से सही से पता होती है। एक बना बनाया सा रस्ता होता है हमारे पास कि बाप वाला रिश्ता है भाई वाला वैसा बॉयफ्रेंड वाला ऐसा, पति वाला वैसा। दुख हमें तभी होता है जब रिश्ते अपने हिसाब से नहीं हमारे हिसाब से रस्ते नहीं पकड़ते।

तुम अकेली हो जिसके साथ मैं चाह के भी रस्ते का कोई नक्शा नहीं बना पाता, कोई मंजिल नहीं दे पाता। कुछ समझ नहीं पाता कि हमें करना क्या है। मैं तुमसे चाहूँ क्या ? तुम मुझसे उम्मीद क्या करो? मुझे अगर किसी चीज से थोड़ा सा भी डर लगता है तो वो है ‘उम्मीद’ । मैं कभी किसी की उम्मीद पर खरा नहीं उतरा।

बस एक चीज जो समझ में आती है वो इतनी कि इस पूरी दुनिया में बस एक किसी को मैं पूरा जान पाऊँ तो वो तुम हो। तुम्हारे आँसू भले मेरी वजह से निकलें या अपने आप, मुझे उनके आने से खबर पहले से हो। तुम अगर रो रही हो तो मैं कोई छोटा मोटा सा मज़ाक कर पाऊँ भले मेरी उँगलियाँ तुम्हारे आँसू तक पहुंचे या न पहुँचे।

तुम्हें कोई भला बुरा बोले तो मैं ये कसम ‘न’ खाऊँ कि ‘मैं तुम्हारा बदला लूँगा’। कोई भी ऐसी बात जो तुम्हें कमजोर करती है या फिर मेरी जरूरत तुम्हारी जिंदगी में बनाती है मैं हर एक उसस बात से दूर रहना चाहता हूँ।

जिदंगी की सबसे बुरी बात मालूम क्या है यही कि अगर तुम्हें कुछ हो जाए तो भी जिन्दा रह लूँगा और तुम भी मेरे बगैर रह लोगी। जिन्दगी की सबसे खराब बात जिन्दगी है।

मैं अक्सर जब तुमसे बात कर रहा होता हूँ तो पता नहीं कहाँ से एक वाहियाद सा ख़याल आता है कि एक दिन ये बातें ख़तम हो जायेंगी। तुम्हें शायद कुछ हो जाए, मुझे शायद कुछ हो जाए। मुझे डर लगता है तुम्हारे जाने से सोचकर भी। कमाल की बात ये है कि तुम सही से आई भी नहीं हो लेकिन जितना भी आई हो उतना भी चले जाने से डर लगता है। ऐसा कभी पहले नहीं हुआ।

मुझसे एक बार किसी ने पूछा था कि तुम्हें सबसे पहली बार खुशी कब हुई थी। मुझे बहुत सोचने पे याद आया कि जब मैं बिना सपोर्ट के साइकल से घर के सामने वाले ग्राउंड का एक चक्कर लगा पाया था। तुमसे बात करते हुए पता नहीं क्यूँ गाज़ियाबाद का वो घर याद आता है मुझे वो ग्राउंड याद आता है मुझे। ऐसा लगता है हमारी जान पहचान उतनी ही पुरानी है जब से मुझे समझ हुई कि जान पहचान क्या होती है।
तुम्हारा गुस्सा होना बहुत अच्छा लगता है। मैंने बहुत कोशिश की कि तुम्हें मनाने के लिए कुछ लिखूँ लेकिन तुम्हें मनाने का ख़याल भी बड़ा टुच्चा है हम अपने आप को कभी मनाते थोड़े हैं।

मालूम है हमारे रिश्ते की सबसे अच्छी बात क्या है यही कि हमारे पास असली यादें भले न हों लेकिन बनाई हुई बहुत यादें हैं। असली यादें कम पड़ सकती हैं, सड़ सकती हैं लेकिन बनाई हुई यादें हमारे बाद भी रहेंगी। हम किसी किताब में ये सब बातें लिख के छोड़ जायेंगे। किताब के पहले पन्ने पर तुम इसको ‘work of fiction’ लिख देना क्यूंकी अव्वल तो कोई इस कहानी के असली होने का विश्वास नहीं करेगा और जो विश्वास करेगा वो हमारी बेचैनी से पागल होकर मर जाएगा।

बस अपनी जिन्दगी में मेरी जगह तुम उस किताब बराबर ही मानना जिसके हर एक पन्ने को तुम्हें अपनी थूक से छूकर पलटा हो। जिसकी हर एक अंडरलाइन को तुमने ऐसे सहलाया हो जैसे कभी अमृता ने साहिर के सीने पर बाम लगाकर सहलाया था।
पता है जिन्दगी की सबसे अच्छी बात जिन्दगी है। क्यूंकी इस जिन्दगी में तुम मिली हो। पहली नहीं मिली मलाल नहीं, आगे कभी मिलोगी, फिक्र नहीं। मिली हो यही क्या हम है कुछ 50-60 साल काटने के लिए।

तुम जवाब लिखना इंतज़ार रहेगा। लिखने में देर मत करना। लिखा हुआ अक्सर सच हो जाता है। वो भी तो हमें मिलवाने से पहले कहीं लिखता होगा। कहीं तो छोटा ही सही, थोड़ी देर के लिए ही सही उसने हमारा नाम साथ तो लिखा होगा, यही क्या कम है।

~ दिव्य

Comments

comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *