अब पहली किताब आने से पहले जैसा डर तो नहीं लगता लेकिन हर नयी किताब से पहले हल्की-सी घबराहट ज़रूर होती है। ऐसा विश्वास है कि मेरी घबराहट को आप अपने प्यार, दोस्ती और दुलार से संभाल लेंगे।
मैंने अभी तक जो भी लिखा है उसके पीछे एक मजाज़ साहब का शेर as guiding philosophy काम करता रहा है.
“ज़माने से आगे तो बढ़िए ‘मजाज़’
मजाज़
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है”
कोशिश यही रही है कि कुछ ऐसी बात कही जाये जो इस दुनिया को थोड़ा आगे लेकर जाए.
हालाँकि ये बात कहना आसान है और उसको उतार पाना उतना ही मुश्किल. उसी कड़ी में अगली कोशिश है ‘इब्नेबतूती’.
इब्नेबतूती, अब आपके हवाले!
उम्मीद करता हूँ कि किताब आप दोनों को पसन्द आएगी।
~ दिव्य प्रकाश
किताब अमेज़न पर उपलब्ध है: इब्नेबतूती