प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9387464711
‘शर्तें लागू’ को समकालीन हिंदी कहानी कहने की दुनिया में एक अनोखा और पहला प्रयास कहा जा सकता है। इन पन्नों में आपको वो स्कूल वाली लड़की मिलेगी जो हमेशा चर्चाओं का हिस्सा रही, वो मोहल्ले वाला दोस्त जो हर किसी को दिलासा देता था—“टेंशन मत ले यार, सब ठीक हो जाएगा,” और वो चाचा भी, जिन्हें आपसे कभी पूरी तरह संतोष नहीं था।
इसे पढ़ना ऐसा लगता है जैसे आप अपनी ही डायरी के पन्ने पलट रहे हों—सच्चाइयों, यादों, पहली मोहब्बत और उन गुप्त ख्यालों से भरी हुई, जिन्हें आप सिर्फ अपने तक रखते हैं। यहाँ की 14 कहानियाँ न तो दूर की हैं, न अनजान; ये तो वही साधारण, रोज़मर्रा की कहानियाँ हैं, जो आपके आस-पास हर दिन घटती रहती हैं।
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9392820403
हम सभी की ज़िंदगी में एक लिस्ट होती है – सपनों की, छोटी-छोटी खुशियों की। सुधा की ज़िंदगी में भी ऐसी ही एक लिस्ट थी। अक्सर हम अपनी उसी सपनों की लिस्ट को पूरा करते-करते ज़िंदगी गुज़ार देते हैं। जब सुधा अपनी लिस्ट के सारे ख्वाब पूरे करने की ओर बढ़ रही थी, तब तक चंदर तीस साल की उम्र तक वो सब कर चुका था, जो ‘कर लेना चाहिए’ माना जाता है। तीन बार प्यार किया – एक बार सच्चा वाला, एक बार बस टाइम-पास वाला और एक बार लिव-इन वाला। वो एक परफेक्ट लाइफ़ चाहता था।
मुसाफ़िर कैफ़े सुधा और चंदर की, और उन तमाम लोगों की कहानी है जो अपनी विश लिस्ट पूरी करते-करते परफेक्ट ज़िंदगी की तलाश में भटकते रहते हैं।
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9392820847
मनोज साल्वे के लिए सबसे मुश्किल और लगभग हार चुके मुक़दमे जीतना सिर्फ़ एक हुनर नहीं, बल्कि एक रोमांच था। जैसे ही वो अदालत में बोलने के लिए खड़े होते, जज तक सीधा होकर सुनने लगते। उनकी तस्वीर अनगिनत पत्रिकाओं के कवर पर छप चुकी थी और लगातार एक दशक तक उनका नाम देश के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार रहा। बड़े फिल्म सितारे, ताक़तवर नेता और कारोबारी दिग्गज – हर कोई या तो उनका दोस्त था या होना चाहता था। बहुतों के लिए वे अपने समय के सबसे बेहतरीन वकील थे।
लेकिन फिर आया वो झटका जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी – ये खुलासा कि उनकी क़ानून की डिग्री नकली थी। इस बार उनके पास कोई बचाव नहीं था। जो शख्स अदालत में हर लड़ाई जीतता रहा, वो अपनी ही बेटी की नज़रों में खलनायक कैसे बन गया? साशा ने उनसे सारे रिश्ते क्यों तोड़ लिए? और अब, क्या मनोज अपने करियर के साथ-साथ अपनी बेटी – और शायद खुद से – टूटा रिश्ता फिर से जोड़ पाएंगे?
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9387464957
परंपरागत रूप से शादी की व्यवस्था माता-पिता अपने बच्चों के लिए करते हैं, लेकिन इब्न-ए-बतूती इस सोच को पूरी तरह उलट देता है। राघव अवस्थी, एक युवा बेटा, अपनी अविवाहित माँ के लिए जीवनसाथी ढूँढ़ने का निर्णय लेता है – एक ऐसा विचार जो शुरुआत में आसान लगा, मगर जल्द ही उससे कहीं ज़्यादा जटिल साबित हुआ जितना उसने सोचा था। जो एक हल्की-फुल्की योजना की तरह शुरू हुआ था, वह धीरे-धीरे अप्रत्याशित चुनौतियों, भावनाओं और सच्चाइयों से भरी एक यात्रा बन गया।
आज के समय में स्थापित यह कहानी एक बीते युग की खामोशी को भी समेटती है। इब्न-ए-बतूती केवल एक परिवार की कथा नहीं, बल्कि हमारे आसपास अधूरी रह गई उन तमाम चीज़ों की भी दास्तान है – वे ख़त जो कभी भेजे नहीं गए, वे बातें जो कहने से रह गईं, वे भावनाएँ जो व्यक्त न हो सकीं और वे रास्ते जो अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाए। यह अधूरे रिश्तों और अधूरे पलों की कहानी है, जो अधूरेपन में छुपी ख़ूबसूरती और कसक को पकड़ती है।
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9387464407
ऑक्टोबर जंक्शन चित्रा और सुदीप की एक नर्म और भावुक कहानी है – दो आत्माएँ, जो एक अजीब-सी, परिभाषा से परे जुड़ाव में बंधी हैं। हर साल 10 अक्टूबर को बनारस में उनकी राहें मिलती हैं – न दोस्त की तरह, न प्रेमी की तरह और न ही एक जोड़े की तरह, फिर भी हमेशा अजनबियों से कहीं ज़्यादा। इन मुलाक़ातों के जरिये यह उपन्यास प्रेम, इंतज़ार और समय की क्षणभंगुरता पर गहरा मनन करता है, यह दिखाता है कि रिश्ते पारंपरिक परिभाषाओं के बाहर भी हो सकते हैं और फिर भी हमारी ज़िंदगी पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
बनारस की सनातन पृष्ठभूमि पर रची यह कहानी शहर को भी एक मौन साक्षी बना देती है – इसके घाट, गलियाँ और नदी उनके हर मिलन में साँस लेते प्रतीत होते हैं। सरल मगर गहराई तक उतर जाने वाली लेखनी से दिव्य प्रकाश दुबे ने इंसानी भावनाओं की सुंदरता और नाज़ुकता को पकड़ा है। ऑक्टोबर जंक्शन सिर्फ़ अपने किरदारों के लिए नहीं, बल्कि उन सवालों के लिए याद रह जाती है जो यह प्रेम, साथ और हमें बाँधने वाले अदृश्य रिश्तों पर उठाती है।
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9381394823
मसाला चाय दिव्य प्रकाश दुबे की बेहद मोहक कहानियों का संग्रह है, जो साधारण और गहरे अनुभवों को खूबसूरती से एक साथ पिरोता है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में गहराई से जमीं ये कहानियाँ अपनी सादी लेकिन असरदार शैली से चमकती हैं। हर कहानी आपको अपने से जोड़ लेती है – पहचाने हुए किरदारों और हालातों के साथ, जो कभी हल्की-फुल्की हँसी तो कभी दिल को गहराई से छू लेने वाले एहसास जगाती हैं। लेखक की पैनी नज़र और दिल से कही गई बातें इस किताब को ऐसा आकर्षण देती हैं कि हर कहानी अलग स्वाद छोड़ती है, जो हमारे अपने अनुभवों से गूंजती है।
अपने दूसरे संग्रह में, लेखक ऐसे पात्र रचते हैं जो इतने जीवंत लगते हैं कि पाठक अपने जीवन के लोगों को उनमें आसानी से देख सकते हैं। चाहे बचपन की मासूमियत हो, जवानी की चुनौतियाँ हों या रिश्तों की मीठी-खट्टी परतें, मसाला चाय इन्हें पूरे स्नेह और सच्चाई के साथ समेटती है। जो भी पाठक अपनी यात्रा और भावनाओं को आईने की तरह कहानियों में देखना पसंद करते हैं, उनके लिए यह किताब ज़रूर पढ़ने लायक है – एक ऐसी किताब जो आख़िरी पन्ना पलटने के बाद भी दिल में लंबे समय तक बनी रहती है।
प्रकाशक : हिन्द युग्म
ISBN : 978-9392820007
दो दोस्त निकलते हैं यह जानने कि कविता सचमुच कहाँ से उत्पत्ति है। एक छोटे शहर की सुपर मॉम हर रोज़ टीवी पर आने का सपना देखती है। भोपाल की एक लड़की अब भी मुंबई में रहने वाले अपने पेन-फ्रेंड को हाथ से लिखे खत भेजती है। एक मॉडल, जिसका एक हिट गाना आया और फिर लगातार नाकामियाँ मिलती रहीं। देहरादून का एक डाकिया, जो शहर का सबसे अच्छा अभिनेता भी है। लखनऊ की एक पुरानी हवेली में रहने वाले जीवित लोग, जिन्हें बाकी लोग भूत समझकर छोड़ गए हैं। द्रौपदी, जिसने पाँच भाइयों में बाँटे जाने से इनकार कर दिया और गौतम बुद्ध, जो सोचते हैं कि अगर वे घर लौट आते तो क्या होता।
दिव्य प्रकाश दुबे की इन 16 कहानियों में अलग-अलग शहरों में जी रहे आम और खास लोगों की झलक मिलती है, जिन्हें नए रंगों में दिखाया गया है। ये किरदार आधे-अधूरे सपनों और इच्छाओं के बावजूद पूरे हैं। इनमें जीवन का असली सार झलकता है – उम्मीदें, संघर्ष और वे भावनाएँ जो हमें इंसान बनाती हैं। रिश्तों और उन पलों का यह रंगीन ताना-बाना हमारे अस्तित्व की गहराई को छू जाता है।
Bestselling author of seven books, creator of StoryBaazi and dialogue writer for films and web series. I believe stories are bridges — they connect us, heal us and remind us of who we are.
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