संडे वाली चिट्ठी 14 – प्रिय बेटा

प्रिय बेटा,

चिट्ठी इसीलिए लिख रहा हूँ क्यूँकि हर बात फ़ोन पर नहीं बोल सकते। हम लोग कुछ बातें बस लिख के ही बोल सकते हैं।

फ़ोन पे जब तुमसे रोज़ पूछता हूँ कि पढ़ाई सही से हो रही है न और तुम एक ही टोन में रोज़ बताते हो कि हाँ पापा अच्छे से हो रही है । तब मन करता है कि बोलूँ तुमको कि हफ़्ते में एक दो दिन कोर्स वाली किताब को हाथ मत लगाया करो।

एक बात याद रखना अच्छे बच्चे वो होते हैं जो अपने घर वालों की सारी बातें मानते हैं और सबसे अच्छे बच्चे वो होते घर वालों की सभी बातें नहीं मानते । सारी बातें बच्चे मान ही नहीं सकते सारी बातें बस मशीन मानती हैं। कॉलेज से आवारा बनके लौटोगे तो एक बार को झेल लेंगे लेकिन कॉलेज से मशीन बनके के मत लौटना ।

ये सब तुमको इसलिए लिख रहा हूँ क्यूँकि हम हमेशा तुम्हारे दादाजी की सारी बात मानते रहे कभी कुछ मना नहीं कर पाए। घर के अच्छे लड़के बन गए हम लेकिन अपनी नज़र में बहुत अच्छे नहीं बन पाए।

हो पाए तो कॉलेज में प्यार करने की कोशिश करना। एक आध बार दिल टूटने से न डरना और सबसे ज़रूरी बात प्यार देखकर प्यार करना कास्ट देखकर नहीं।

बेटा सोच रहे होगे कि पिताजी को क्या हो गया। काहें इतनी लम्बी चिट्ठी लिखकर सेंटिया रहे हैं तो यार ये जान लो अपने कॉलेज में हम तुम्हारे दादा जी की चिट्ठी का बहुत इन्तज़ार किए लेकिन कभी वो चिट्ठी आयी नहीं । हमने जो इन्तज़ार किया वो तुम्हें न करना पड़े इसलिए लिख दिए आज।

जवाब भेजने की ज़रूरत समझना तो भेज देना नहीं तो कोई बात नहीं।

आशीर्वाद,

पापा

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