अपना पहला क़दम आदमी दो बार चलता है । एक बार छोटे पर जब माँ बाप सहारा देकर हमें चलाते हैं । दूसरा पहला क़दम हम तब चलते हैं जब हमें पता चल जाता है कि वो एक ऐसी चीज़ क्या है जो हमारी लाइफ़ को मीनिंग देती है। कुछ सेन्स मिलता है कि साला हम धरती पर आख़िर आए क्यूँ हैं । वो चीज़ पता चलते ही हम अपना पहला क़दम दूसरी बार चलते हैं।
जब मैंने किताब लिखना शुरू किया था तो बस ये पता था कि कुछ दोस्त लोग किताब लेंगे। शुरू में as a writer आप पर बहुत लोग ट्रस्ट नहीं करते क्यूँकि मेरी कहानी किसी मैगज़ीन में नहीं ही कभी छपी और न ही मुझे कभी ख़याल आया कि अपनी कहानी किसी भी हिन्दी की मैगज़ीन में भेजा जाए। नहीं ऐसा नहीं है कि हिंदी की सब साहित्यिक मैगज़ीन बेकार हैं ऐसा बिलकुल नहीं बस उसमें मेरी जैसी आवाज़ वाले के लिए कोई जगह नहीं दिखती थी और मैं अपनी आवाज़ उनके हिसाब से बदलना नहीं चाहता था। आख़िर अपनी आवाज़ अपने स्टाइल के अलावा अपना हमारे पास होता भी क्या है।
आप कोई भी काम शुरू कीजिये सबसे पहले कई बार आपके घरवालों से भी पहले आपका कोई दोस्त आपसे कहता है, “करो बे । तुमसे नहीं होगा तो किसी नहीं होगा”
ये बात झूठ होती है लेकिन अगर ये झूठ न होते तो कभी कोई साइकल चलाना नहीं सीख पाता, कोई तैरना नहीं सीख पाता, स्कूल कॉलेज के कितने प्यार बस अरमान रहकर मर जाते । इस झूठ ने ही हमें हमेशा से ज़माने भर की हिम्मत दी है। कुछ नया करने की, ग़लतियाँ करने की।
ये सौ रुपय का नोट मसाला चाय की पहली कमायी थी। दोस्त वो था जिसके साथ एंजिनीरिंग के तीन साल एक कमरे में काटे थे। मुझे ख़ुशी है कि आज भी वही दोस्त साथ में है और नए दोस्तों का भरोसा बढ़ा है । लाखों fans से कुछ दोस्त भले हैं जो झूठ भी बोलते हैं और बेझिझक चप्पल भी मारते हैं । बस हाँ में हाँ नहीं मिलाते। याद करिये आख़िरी इंसान जिसकी हाँ में आपने हाँ मिलायी थी वो आपका कौन था। वो ज़रूर कोई ऐसा होगा जिससे आपको कुछ काम होगा।
आपको शुरुआत में बस एक क़दम चलना होता है बाक़ी सब बस पहले क़दम का रेपिटिशन होता है। मैंने तो अपना पहला क़दम चल दिया बिना जाने कि मंज़िल क्या होगी हासिल क्या होगा ।
आप अपना पहला क़दम कब चल रहे हैं ?